Saurabh Patel

Add To collaction

१३- जन एकता की भाषा हिंदी- रचना १३


तेरा ये यूंही मिलना मुझे बहुत परेशान करता है
मुझे वो राज़ जानने है जिसे छुपाने काम तेरा जहन करता है

वो आदमी कौन है जो तेरे करीब आते जा रहा है
बस वहीं आदमी मुझे आदमी से हैवान करता है

जब भी गया जिस हाल में गया मुझे ठहरने दिया
खून के रिश्तों से लेकर दोस्ती तक का सारा काम मेरा मकान करता है

चांद और सूरज का एक ही आसमान में बसेरा है
तो फ़िर जमीं पर क्यूं आदमी हिंदू मुसलमान करता है

आलस मैं हैं वो खुर्शिया और उसपे बैठने वाले लोग
मज़हब सियासी लोगो का काम कितना आसान करता है

रात ने तो फ़िर भी अंधेरा दिया रोने के लिए
मगर ये दिन का उजाला क्या कभी हम पे कोई एहसान करता है

सजा का कोई इंतज़ाम नहीं इस गुनाह के लिए "सौरभ"
इश्क़ को कानून से ऊपर रखकर कितना गैरकानूनी काम कानून करता है।

   20
13 Comments

जेहन,,, आलस मैं नहीं, में हैं, कुर्सियां होना चाहिए

Reply

बहुत ही सुंदर सृजन और एकदम उत्कृष्ठ

Reply

Saurabh Patel

16-Sep-2022 09:55 PM

जी बहुत शुक्रिया आपका

Reply

Saurabh Patel

29-Sep-2022 04:04 PM

जी बहुत शुक्रिया आपका

Reply

Suryansh

16-Sep-2022 06:57 AM

बहुत ही उम्दा

Reply